पौरोहित्य कर्म प्रशिक्षक Book के प्रथम खंड में नित्यकर्मविधि के अन्तर्गत दैनिक क्रियाओं, सन्ध्योपासन, बलिवैश्वदेव, नित्यतर्पण आदि स्वयं किये जाने वाले बिन्दु अनिवार्य विषय में दिये गये हैं। पर्यावरण की पवित्रता, शुद्धता तथा सूक्ष्म चेतना से निरन्तर जुड़े रहने की प्रक्रिया में नित्य- होम का विधान है, जिसे विशिष्ट कर्मकाण्डों के प्रकरण में चतुर्थ खंड में होमविधि के साथ दे दिया गया है।
भारतीय जीवनपद्धति (जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है) में संस्कारों की अपनी अलग विशेषता है। जीवन में इनकी पग-पग पर अनिवार्यता है। उनके महत्त्व पर इस पुस्तक में संपादकों द्वारा विशेष रूप से प्रकाश डाला गया है। प्रस्तुत पुस्तक में संस्कारों के प्रारम्भिक परिचय के साथ, प्रमुख संस्कारों का उल्लेख संक्षेप में कर दिया गया है, किन्तु उपनयन, विवाह, अन्त्येष्टि जैसे महत्त्वपूर्ण एवं प्रचलित संस्कारों की प्रस्तुति ग्रन्थ के द्वितीय खण्ड में किचित विस्तार के साथ की गई है, जिससे इहें संपादित कराने में कोई कठिनाई न हो। यद्यपि जन्मोत्सव संस्कार की भी प्रमुखता नहीं रही फिर भी युग की माँग के अनुरूप उसकी प्रमुखता इन दिनों विशेष रूप से बढ़ती जा रही है, इसलिये इसे भी द्वितीय खंड में अलग से सम्मिलित कर दिया गया है।
ग्रन्थ के तृतीय खंड में देवपूजा के सामान्य परिचय के साथ-साथ सामान्य रूप से प्रयुक्त होने वाले संकल्प, पंचोपचार, षोडशोपचार, कलशस्थापन आदि की विधियाँ दे दी गयी हैं। इसी क्रम में आराध्यदेव विशेष, नैमित्तिक एवं काम्य कार्यों के लिये जन सामान्य द्वारा विशिष्ट देवों के पूजन की विधि एवं प्रक्रिया भी दी गयी है। इसके अन्तर्गत यज्ञ एवं होम प्रकरण हैं जिनमें प्राणप्रतिष्ठा, सर्वतोभद्रस्थापन, लिंगतोभद्र देव विशेष पूजन आदि सम्मिलित हैं। दैनन्दिन जीवन में तथा विशेष अवसरों पर श्रीमद्भागवत जैसे पुराणों का पारायण वाचन/पूजन सत्यनारायण कथाश्रवण आदि कराये जाते हैं। उनकी भी संक्षिप्त रूपरेखा चतुर्थ खंड में अलग से दे दी गयी है। इसी प्रकरण में वास्तु पूजा तथा गृहप्रवेश को भी समाहित किया गया है।
Paurohitya Karma Prashikshak (पौरोहित्य कर्म पद्धति) by Chandrakant Dwivedi Triveni Prasad Shukla and Jagadanand Jha – UPSS Lucknow
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